पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में करीब ढाई महीने से चल रहे मज़दूर आन्दोलन को कुचलने के लिए प्रशासन ने फैक्ट्री मालिकों के इशारे पर एकदम नंगा आतंकराज कायम कर दिया है। गिरफ्तारियां, फर्जी मुकदमे, मीडिया के जरिए दुष्प्रचार व धमकियों के जरिए मालिक-प्रशासन-नेताशाही का गंठजोड़ किसी भी कीमत पर इस न्यायपूर्ण आंदोलन को कुचलने पर आमादा है। 15 अक्टूबर की रात संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के तीन नेतृत्वकारी कार्यकर्ताओं - प्रशांत, प्रमोद कुमार और तपीश मैंदोला को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस उन पर शांति भंग जैसी मामूली धाराएं ही लगा पाई लेकिन फिर भी 16 अक्टूबर को सिटी मजिस्ट्रेट ने उन्हें ज़मानत देने से इंकार करके 22 अक्टूबर तक जेल भेज दिया। इससे पहले 15 अक्टूबर की रात ज़िला प्रशासन ने तीनों नेताओं को बातचीत के लिए एडीएम सिटी के कार्यालय में बुलाया जहां काफी देर तक उन्हें जबरन बैठाये रखा गया और उनके मोबाइल फोन बंद कर दिये गये। उन्हें आन्दोलन से अलग हो जाने के लिए धमकियां दी गईं। इसके बाद उन्हें कैंट थाने ले जाया गया जहां उनके साथ मारपीट की गई। इसके अगले दिन मालिकों की ओर से इन तीन नेताओं के अलावा 9 मजदूरों पर जबरन मिल बंद कराने, धमकियां देने जैसे आरोपों में एकदम झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया गया। गिरफ्तारी वाले दिन से ही जिला प्र्रशासन के अफसर ऐसे बयान दे रहे हैं कि इन मजदूर नेताओं को ”माओवादी“ होने की आशंका में गिरफ्तार किया गया है और उनके पास से ”आपत्तिजनक“ साहित्य आदि बरामद किया गया है। उल्लेखनीय है कि गोरखपुर के सांसद की अगुवाई में स्थानीय उद्योगपतियों और प्रशासन की ओर से शुरू से ही आन्दोलन को बदनाम करने के लिए इन नेताओं पर ‘‘नक्सली’’ और ‘‘बाहरी’’ होने का आरोप लगाया जा रहा है। कुछ अफसरों ने स्थानीय पत्रकारों को बताया है कि पुलिस इन नेताओं को लंबे समय तक अंदर रखने के लिए मामला तैयार कर रही है।
इससे पहले 15 अक्टूबर को जिलाधिकारी कार्यालय में अनशन और धरने पर बैठे मजदूरों पर हमला बोलकर उन्हें वहां से हटा दिया गया। महिला मजदूरों को घसीट-घसीटकर वहां से हटाया गया। प्रशांत, प्रमोद एवं तपीश को ले जाने का विरोध कर रही महिलाओं के साथ मारपीट की गई। ये मजदूर स्वयं प्रशासन द्वारा पिछले 24 सितम्बर को कराये गये समझौते को लागू कराने की मांग पिछले कई दिनों से प्रशासन से कर रहे थे। 3 अगस्त से जारी आन्दोलन के पक्ष में जबर्दस्त जनदबाव के चलते प्रशासन ने समझौता कराया था लेकिन मिलमालिकों ने उसे लागू ही नहीं किया। समझौते के बाद दो सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आधे से अधिक मजदूरों को काम पर नहीं लिया गया है। थक हारकर 14 अक्टूबर से जब वे डीएम कार्यालय पर अनशन पर बैठे तो प्रशासन पूरी ताकत से उन पर टूट पड़ा। मॉडर्न लेमिनेटर्स लि. और मॉडर्न पैकेजिंग लि. के इन मजदूरों की मांगें बेहद मामूली हैं। वे न्यूनतम मजदूरी, जॉब कार्ड, ईएसआई कार्ड देने जैसे बेहद बुनियादी हक मांग रहे हैं, श्रम कानूनों के महज़ कुछ हिस्सों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। बिना किसी सुविधा के 12-12 घंटे, बेहद कम मजदूरी पर, अत्यंत असुरक्षित और असहनीय परिस्थितियों में ये मजदूर आधुनिक गुलामों की तरह से काम करते रहे हैं। गोरखपुर के सभी कारखानों में ऐसे ही हालात हैं। किसी कारखाने में यूनियन नहीं है, संगठित होने की किसी भी कोशिश को फौरन कुचल दिया जाता है। पहली बार करीब पांच महीने पहले तीन कारखानों के मजूदरों ने संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा बनाकर न्यूनतम मजदूरी देने और काम के घंटे कम करने की लड़ाई लड़ी और आंशिक कामयाबी पायी। इससे बरसों से नारकीय हालात में खट रहे हजारों अन्य मजदूरों को भी हौसला मिला। इसीलिए यह मजदूर आन्दोलन इन दो कारखानों के ही नहीं बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम उद्योगपतियों को बुरी तरह खटक रहा है और वे हर कीमत पर इसे कुचलकर मजदूरों को ”सबक सिखा देना“ चाहते हैं। कारखाना मालिक पवन बथवाल दबंग कांगे्रसी नेता है और भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ का उसे खुला समर्थन प्राप्त है। प्रशासन और श्रम विभाग के अफसर बिके हुए हैं। शहर में आम चर्चा है कि मालिकों ने अफसरों को खरीदने के लिए दोनों हाथों से पैसा लुटाया है। मजदूरों ने पिछले दो महीनों के दौरान गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक, हर स्तर पर बार-बार अपनी बात पहुंचायी है लेकिन ”सर्वजन हिताय“ की बात करने वाली सरकार कान में तेल डालकर सो रही है। मजदूरों और नेतृत्व के लोगों को डराने-धमकाने, फोड़ने की हर कोशिश नाकाम हो जाने के बाद पिछले महीने से यह सुनियोजित मुहिम छेड़ दी गई कि इस आन्दोलन को ‘‘माओवादी आंतकवादी’’ और ‘‘बाहरी तत्व’’ चला रहे हैं और यह ”पूर्वी उत्तर प्रदेश को अस्थिर करने की साज़िश“ है। इससे बड़ा झूठ कोई नहीं हो सकता।
आप क्या कर सकते हैं - मज़दूर आन्दोलन के दमन और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव, श्रम और श्रम मंत्री को, तथा गोरखुपर के जिलाधिकारी को फैक्स, ईमेल या स्पीडपोस्ट से विरोधपत्र भेजें। ईमेल की एक प्रति कृपया हमें भी फारवर्ड कर दें। - इस मुद्दे पर बैठकें तथा धरना-विरोध प्रदर्शन आयोजित करें। - अपने संगठनों की ओर से अपनी ओर से इसके विरोध में बयान जारी करें और हस्ताक्षर अभियान चलाकर उपरोक्त पतों पर भेजें। - दिल्ली में 21 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश भवन पर आयोजित विरोध प्रदर्शन में शामिल हों।
गोरखपुर के मजदूर आन्दोलन के समर्थक बुद्धिजीवियों, आम नागरिकों, छात्रों-युवाओं की ओर से,
कात्यायनी, सत्यम, मीनाक्षी, रामबाबू, कमला पाण्डेय, संदीप, संजीव माथुर, जयपुष्प, कपिल स्वामी, अभिनव, सुखविन्दर, डा. दूधनाथ, शिवार्थ पाण्डेय, अजय स्वामी, शिवानी कौल, लता, श्वेता, नेहा, लखविन्दर, राजविन्दर, आशीष, योगेश स्वामी, नमिता, विमला सक्करवाल, चारुचन्द्र पाठक, रूपेश राय, जनार्दन, समीक्षा, राजेन्द्र पासवान…
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