Wednesday, March 12, 2008

जिन्‍दगी का द्वन्‍द - शशिप्रकाश


शशिप्रकाश जी हिन्‍दी के एक जाने माने क्रान्तिकारी कवि हैं. हाल ही में उनकी कुछ कविताओं को पढ़ते हुए उनको जाना. और उनकी एक कविता में जैसे खुद को छुपे पाया

"एक अमूर्त चित्र मुझे आकृष्‍ट कर रहा है.
एक अस्‍पष्‍ट दिशा मुझे खींच रही है.
एक निश्चित भविष्‍य समकालीन अनिश्‍चय को जन्‍म दे रहा है.
(या समकालीन अनिश्‍चय एक निश्चित भविष्‍य में ढल रहा है?)
एक अनिश्‍चय मुझे निर्णायक बना रहा है.
एक अगम्‍भीर हंसी मुझे रूला रही है.
एक आत्‍यांतिक दार्शनिकता मुझे हंसा रही है.
एक अवश करने वाला प्‍यार मुझे चिन्तित कर रहा है.
एक असमाप्‍त कथा मुझे जगा रही है.
एक अधूरा विचार मुझे जिला रहा है.
एक त्रासदी मुझे कुछ कहने से रोक रही है.
एक सहज जिन्‍दगी मुझे सबसे जटिल चीजों पर सोचने के लिए मज़बूर कर रही है.
एक सरल राह मुझे सबसे कठिन यात्रा पर लिये जा रही है."