Wednesday, November 5, 2008

कवि और उनकी कविता

अपने एक मित्र के जरिये मनमोहन जी की कुछ कविताएं पढ़ने को मिली. उनकी कवितायें किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. नीचे उनकी कविताओं का लिंक दिया है, उनसे रूबरू होने पर आप खुद ही समझ जायेंगे

http://ek-ziddi-dhun.blogspot.com/2008/11/blog-post.html

Friday, July 25, 2008

सामाजिक बदलाव के आन्‍दोलन से जुड़े कर्मठ योद्धा श्री अरविन्‍द को क्रान्तिकारी सलाम

'दायित्वबोध' पत्रिका के सम्पादक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता अरविन्द सिंह की गुज़री रात गोरखपुर में मृत्यु हो गई। वह पिछले सात दिनों से बीमार चल रहे थे। बुधवार की शाम उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां अचानक उनकी स्थिति बिगड़ गई। बृहस्पतिवार की रात 9:40 पर उन्होंने अन्तिम सांस ली। वे 43 बरस के थे।

विद्यार्थी जीवन से ही अरविन्द सामाजिक बदलाव के आन्दोलन से जुड़े रहे थे। छात्रों की पत्रिका 'आह्नान' के शुरू होने के वक्त वह उसके सम्पादक मंडल में भी थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक गोरखपुर, वाराणसी, लखनऊ और दिल्ली में छात्रों, युवाओं और मज़दूरों के बीच काम किया था। मज़दूर अख़बार 'बिगुल' के सम्पादन-प्रकाशन के साथ ही वह गोरखपुर में सघन आन्दोलनात्मक और सांगठनिक गतिविधियों में व्यस्त थे। एक कुशाग्र लेखक और वक्ता होने के साथ ही अरविन्द एक क्षमतावान अनुवादक भी थे। उन्होंने बड़ी संख्या में सैद्धान्तिक सामग्री के अनुवाद के अलावा देनी दिदेरो की प्रसिध्द उपन्यासिका 'रामो का भतीजा' का भी अनुवाद किया।

अरविन्द अपने पीछे पत्नी मीनाक्षी, जो कि स्वयं एक क्रान्तिकारी कार्यकर्ता हैं, और दोस्तों-मित्रों और हमराहों की एक बड़ी संख्या छोड़ गए हैं।

यह सन्नाटा जब बीत चुका रहेगा यारो
यह ख़ामोशी जब टूट चुकी रहेगी
मुमकिन है कि हम मिलें
तो थोड़े से बचे हुए लोगों के रूप में
कहीं शाल-सागौन के घने सायों में
गुलमोहर-अमलतास-कचनार की बातें करते हुए
हृदय पर एक युद्ध की गहरी छाप लिये
और सबको दिखायी पड़ने वाला एक दूसरा
समूचा का समूचा युद्ध सामने हो।
सन्नाटे के ख़िलाफ
यह युद्ध है ही ऐसा
कि इसमें खेत रहे लोगों को
श्रद्धां‍जलि नहीं दी जाती,
बस कभी झटके से
वे याद आ जाते हैं
बरबस
अपनी कुछ अच्छाइयों की बदौलत।


इस कर्मठ योद्धा को क्रान्तिकारी सलाम

Friday, July 18, 2008

दिल्‍ली में शोषण के खिलाफ एकजुट हुए बादाम मजदूर, असंगठित थे, अब यूनियन बनाई


पूर्वी दिल्ली के करावल नगर क्षेत्र में बादाम तोड़ने के उद्योग में लगे मज़दूरों ने ठेकेदारों और गोदाम मालिकों के बर्बर शोषण तथा दमन-उत्पीड़न के विरुध्द संघर्ष के लिए कल रात यहां ''बादाम मज़दूर यूनियन'' का गठन किया तथा नवगठित यूनियन के बैनर तले एक विशाल जुलूस निकाला।


ज्ञात है कि करावल नगर इलाके में अमेरिका और आस्ट्रेलिया से आयातित बादाम को तोड़ने के काम में लगभग 10 हजार मज़दूर परिवार लगे हुए हैं और वहाँ कोई भी श्रम कानून लागू नहीं होने के चलते बादाम मजदूर भयंकर शोषण व उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं। श्रम-कानून लागू करने तथा न्यूनतम मजदूरी सहित अन्य माँगों को लेकर नौजवान भारत सभा और बिगुल मज़दूर दस्ता की अगुवाई में पिछले एक माह से बादाम मजदूर अपनी यूनियन बनाने के लिए प्रयासरत थे। इस सिलसिले में मज़दूरों की अनेक बैठकें की गई थीं और पिछले माह 7 जून को मज़दूरों की एक आम सभा में सर्वसम्मति से बादाम मज़दूरों ने अपनी यूनियन बनाने का फैसला किया था। इसके बाद बादाम मज़दूरों का एक प्रतिनिधि मंडल 8 जुलाई को विश्वकर्मा नगर स्थित श्रम विभाग कार्यालय में अपनी माँगों का ज्ञापन लेकर गया था जहाँ श्रम उपायुक्त लल्लन सिंह ने किसी कार्यवाही के लिए 1 माह का समय माँगा था।


बादाम मज़दूर यूनियन के गठन के प्रयासों तथा मीडिया में मजदूरों के हालात उजागर होने से बौखलाए गोदाम मालिकों व ठेकेदारों ने गत 12 जुलाई को करावलनगर पुलिस थाने के सामने नौजवान भारत सभा और बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं पर अपने गुण्डों से हमला भी करवाया था और सरेआम धमकियां दी थीं कि जो कोई भी यूनियन बनाने की कोशिश करेगा उसे जान से मार देंगे। लेकिन इन कायराना हरकतों से मज़दूरों का रोष और बढ़ा तथा यूनियन बनाने के प्रयास तेज हो गये। गत 16 जुलाई की शाम को प्रकाश विहार, करावल नगर में हुई बादाम मज़दूरों की विशाल सभा में ''बादाम मज़दूर यूनियन'' का गठन किया गया, जिसमें आम सहमति से 8 लोगों की संयोजन समिति का चुनाव किया गया। यूनियन की संयोजन समिति में दयानंद, सीतापति, सुमित्रा देवी, सुशीला देवी, रूदल, आशु, अभिनव व आशीष को सर्वसम्मति से चुना गया। इनमें से 5 सदस्य बादाम मजदूर हैं तथा अन्य नौजवान भारत सभा तथा बिगुल मजदूर दस्ता के कार्यकर्ता हैं जो काफी समय से बादाम मजदूरों को संगठित करने में लगे हुए हैं।

सभा में यूनियन के गठन की घोषणा का मजदूरों ने भरपूर उत्साह के साथ स्वागत किया। इसके बाद ''बादाम मजदूर यूनियन'' के बैनर तले हजारों की संख्या में मजदूरों का एक विशाल जुलूस निकाला गया। मजदूरों के उत्साहपूर्ण नारों के साथ जुलूस ने पूरे प्रकाश विहार तथा करावल नगर इलाके का चक्कर लगाया।

बिगुल मज़दूर दस्ता से जुड़े आशु ने कहा कि मज़दूरों को काम से निकालने, धमकाने व मार-पीट के बावजूद जिस साहस के साथ बादाम मज़दूरों ने अपनी यूनियन खड़ी की है वह इस संघर्ष की पहली जीत है और आगे भी यूनियन अपनी माँगें पूरी कराये बिना पीछे नहीं हटेगी। संयोजन समिति के सदस्य अभिनव ने कहा कि यूनियन का पंजीकरण भी जल्द ही करा लिया जायेगा जिसकी प्रक्रिया तत्काल शुरू कर दी गई है। यूनियन ने मजदूरों की मांगों को लेकर गतिविधियां आरंभ कर दी हैं। नौजवान भारत सभा के आशीष ने कहा कि ''बादाम मज़दूर यूनियन'' अपनी माँगों के लिए संघर्ष में कानूनी और आन्दोलनात्मक दोनों तरीकों से मालिकों को झुका कर रहेगा।

Thursday, June 5, 2008

कहां गये वे बच्‍चे



नोयडा और गाजि़याबाद से बच्‍चों के गायब होने की बढ़ती घटनाएं निठारी कांड जैसी किसी बड़ी आपराधिक गतिविधि की आशंका को बल दे रही है. पिछले 2 माह में केवल गाजि़याबाद के शहरी क्षेत्र से पुलिस के अनुसार 36 बच्‍चे लापता हैं जबकि सामाजिक संगठनों द्वारा की गयी जांच से पता चला है कि वास्‍तविक संख्‍या इससे कहीं अधिक है. ये सभी बच्‍चे गरीब तबके के हैं जिसके कारण पुलिस-प्रशासन ने इस मुद्दे पर अब तक बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं दिया है.

नौजवान भारत सभा और बिगुल मज़दूर दस्‍ता की सयुंक्‍त जांच टीम द्वारा गाजि़याबाद और नोयडा की कुछ बस्तियों में 12 से 18 मई तक केवल एक सप्‍ताह के दौरान किए गये सर्वेक्षण में करीब 45 गुमशुदा बच्‍चों के बारे में पता चला. इनमें एक तिहाई संख्‍या लड़कियों की है. इनमें से अधिकांश बच्‍चे हाल ही में गुम हुए हैं.

इन संगठनों ने दिल्‍ली में एक प्रेस कान्‍फ्रेन्‍स में जांच रिपोर्ट 'कहां गये वे बच्‍चे' जारी करते हुए यह जानकारी दी.

नौजवान भारत सभा के तपीश मेन्‍दोला ने बताया कि नौजवान भारत सभा और बिगुल मज़दूर दस्‍ता ने एक महीना पहले गाजि़याबाद जिला प्रशासन को ज्ञापन देकर इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था. इस पर भी कुछ न होते देख दोनों संगठनों ने साझा टीम गठित कर खुद ही इन मामलों की जांच करने का फैसला किया.

एक सप्‍ताह की अवधि में किए गये जांच पड़ताल के दौरान जांच टीम को गाजि़याबाद के नन्‍दग्राम, हर्ष विहार, विजयनगर, प्रताप विहार, संजय नगर, रईसपुर, मिर्जापुर, राहुल विहार, खोड़ा, टिगरी, खड्डा, अर्थला, विकलांग कालोनी, घुकना, दीनदयालपुरी, सलारपुर, करहेड़ा, श्‍यामपार्क एक्‍सटेंशन, बुद्धविहार, नवादा, प्‍यारे लाल कालोनी आदि और नोयडा के भंगेल, विशनपुरा, ममूरा, चोटपुर, छिजारसी के इलाकों में की गयी पू्छताछ के दौरान करीब 45 गुमशुदा बच्‍चों के बारे में पता चला. इनमें से कुछ बच्‍चे तो काफी समय से लापता है.

सूचना का अधिकार कानून के तहत गाजि़याबाद पुलिस द्वारा उपलब्‍ध कराई गई जानकारी के अनुसार इस वर्ष मार्च और अप्रैल माह में गाजि़याबाद के शहरी इलाकों से 36 बच्‍चे गुम हुए हैं जबकि मई माह में बड़ी संख्‍या में बच्‍चों के गायब होने की घटनाएं अखबारों में आ चुकी है. जांच के दौरान यह भी पता चला कि अनेक गरीब मां बाप डर के कारण पुलिस के पास ही नहीं जाते या फिर उनकी रिपोर्ट ही नहीं दर्ज की जाती हैं. जांच टीम को ऐसे कई मां बाप मिले जिन्‍हें पुलिस थानों से अपमानित करके और डरा धमका कर भगा दिया जाता था. किसी तरह अगर उनकी रिपोर्ट लिख भी ली गयी तो उस पर कोई कार्रवाई करने के बजाय पुलिसवाले या तो उनसे पैसे वसूलने की फिराक में रहते थे या उन्‍हें यूं ही दौड़ाते रहते थे.

रिपोर्ट के अनुसार हाल के वर्षो में भारत मावअंगों के विश्‍वव्‍यापी व्‍यापार, चाइल्‍ड पोर्नोग्राफी और बाल वेश्‍यावृत्ति जैसे धन्‍धों का एक बड़ा निशाना बन गया है. निठारी जैसी घटनाओं के सामने आने के बावजूद पुलिस व प्रशासन में इस मामले के प्रति घोर लापरवाही और असंवेदनशीलता का रवैया बरकरार है. उच्‍चतम न्‍यायालय के दिशानिर्देशों का एक भी मामले में पालन नहीं किया गया है. निठारी कांड के बाद राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा गठित जांच समिति की संस्‍तुतियों पर भी कोई ध्‍यान नहीं दिया गया है.

(नौजवान भारत सभा व बिगुल मज़दूर दस्‍ता द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति का अंश)

Thursday, April 24, 2008

One more victim of capitalism - Reporter of worker's paper 'Bigul' implicated in false cases by police in Ludhiana

Several workers injured in boiler explosion - journalist Rajvinder arrested while gathering information about the incident - sections for attempt to murder and damage to public property imposedGoons hired by the factory owner beat up RajvinderWorkers lathi charged by the police, police raids workers' homes at midnight, even women and children not spared.

A dyeing unit of the 'Abhiverma Textiles' factory in the Basti Jodhewal police station area in Ludhiana was destroyed by the explosion in its boiler on Monday (21 April) night. The blast was so powerful that the entire unit was destroyed and even some adjacent factories suffered damage. The Ludhiana based reporter of workers' paper 'Bigul' and social activist Rajvinder reached at the spot on Tuesday morning as the news spread about workers being injured in the blast. He was accompanied by some workers of the adjacent Mahaveer Basti. Some anti-social elements hired by the factory owner attacked and beat him up when he was gathering information about the blast.At least half a dozen workers have been injured in the blast but the workers feared that some dead bodies may be buried in the debris and they might be removed with the connivance of the police. Therefore the workers were not ready to leave the factory gates and they clashed with the police. Rajvinder and some other social workers were also present there. Meanwhile, on Tuesday evening, the police lathi-charged and forced the workers away from the factory and then arrested Rajvinder. He has been booked under the sections for attempt to murder and damaging public property along with 50 unnamed persons.The police are openly with the factory owner. Even after such a terrible blast he has not been arrested and only a case of negligence has been filed against him. The police raided several homes in the Mahaveer Basti on Tuesday night and beat up the workers including women and children. Police are camping outside the basti and terrorising the workers.We fear that the police may torture Rajvinder and implicate him in some other serious case. Yesterday night he was severely beaten by the police and the henchmen of the factory owner inside the Basti Jodhewal police station.We appeal to you to mount pressure on the police and administrative officers in Ludhiana to immediately release Rajvinder and withdraw the false cases against him. You can also send fax and email messages to the Home Secretary of Punjab.

The contact numbers of these officials are as follows:
RK Jaiswal, SSP, Ludhiana -- 09815800402, 0161-2406055
Deputy Commissioner, Ludhiana -- 0161-2403100, Fax: 0161-2404502
Home Secretary, Punjab -- 0172-2740811 Ext. 4730,
Email: pshaj@punjabmail.gov.in
SP City (Mr Cheema) 09814457579
SHO Police Stn. Basti Jodhewal: 09815800135

Friday, April 11, 2008

क्‍या है यह..... एक क्षणिक आवेग


कुछ दिनों पहले अखबार पर सरसरी नजर डालते हुए एक खबर पर नजर अटक गयी. 'फेल होने के डर से एक चौदह साल की बच्‍ची द्वारा आत्‍महत्‍या'. र्शीषक ने मुझे पूरी खबर पढ़ने को मजबूर कर दिया और जैसे जैसे मैं खबर पढ़ती गयी मेरा चेहरा सफेद होता गया. एक मासूम सा चेहरा चुलबुली मुस्‍कुराहट लिये मेरी आंखों के सामने कौंध गया. वह बच्‍ची मेरे भतीजे की दोस्‍त हुआ करती थी. पिछले पांच साल के परिचय में उसको जितना जाना पहचाना था, उससे यह विश्‍वास करना कठिन था कि वह ऐसा कुछ कर सकती है. पुरानी जानपहचान थी, इसलिए सबसे पहले उसके मां बाप की ओर ही मेरा ध्‍यान गया. कैसे सहा होगा ? शायद उनके नजरों की ओर भी ताकने की हिम्‍मत नहीं बची थी मेरी पर फिर भी मै मिली उनसे और खुद के आंसुओं को रोक नहीं पायी. कितनी अजीब बात थी कि मैं खुद को संभाल नहीं पा रही थी और उस बच्‍ची के माता पिता मुझे ढांढस बंधा रहे थे. थोड़ी देर बाद सामान्‍य हुई तो मुझे लगा कि एक किशोर बच्‍ची के मां बाप को अपनी संवेदनाओं को छुपा कर कैसे दुनियादारी निभानी पड़ती है.
उसकी मां के आंसू शायद लोगों को यह समझाते समझाते ही सूख चुके थे कि उनकी बेटी के ऊपर कोई तनाव या दबाव नहीं था. हर नये सवाल पर उनकी नजरे चौंक जाती थी कि पता नहीं लोग क्‍या कहानियां गढ़े और उन्‍हे क्‍या जवाब देना पड़े. मैं अ‍चम्भित थी कि लोग जो चला गया उसके बारे में नहीं सोच रहे थे उनकी जिज्ञासा बस इसमे थी कि क्‍या हुआ होगा. चूंकि जाने वाला एक किशोर था तो कई और सवाल भी लोगों के नजरों में तैर रहे थे. मेरा मन अजीब सा कैसेला हो उठा अचानक दुख की जगह एक गुस्‍से ने ले ली पर यह गुस्‍सा लोगों पर नहीं था बल्कि उस जाने वाले के ऊपर था. क्‍या एक बार भी उसने यह नहीं सोचा कि उसकी इस हरकत से उसके मां बाप या परिवार पर क्‍या असर पड़ेगा. शायद उसे यह अंदाजा भी नहीं होगा कि उसकी मां उसके जाने का दर्द सीने में दबाये लोगों की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए मजबूर होगी और जिस समय उसकी बचपन की यादे, उसकी शरारते मां के जेहन में होनी चाहिए, वो बेचारी उन सवालों का जवाब ढूंढ रही होगी जो लोगों की नजरों में दिख रहे थे. क्‍यों किया उसने ऐसा. एक चौदह साल की बच्‍ची में इतनी हिम्‍मत कैसे आ गयी. ऐसी क्‍या बात हो गयी कि वो अपनी उलझनें अपने माता पिता से भी नहीं बांट सकी. इतना बड़ा फैसला लेना क्‍या उसकी हिम्‍मत का सबूत था या उसकी कमजोरी........... या सिर्फ एक क्षणिक आवेग जो शायद गुजर जाता तो उसके कदम भी रूक जाते.

Thursday, March 13, 2008

कच्ची उम्र की यादें

हर किसी के जीवन का सबसे सुनहरा वक्त शायद 15 से 18 वर्ष के बीच का समय होता है। बचपन और युवावस्था के बीच डोलता मन ना जाने कितने सपने देखता है, कितना कुछ महसूस करता है। हर कोई कवि होता है अपनी दुनिया में । और कागजो में उतारता है अपने मन की बातें, दर्द, खुशिया सब कुछ। आज व्यस्क होने पर शायद वह सब शब्द और भावनाए बचकाने लगे पर उनमे छिपी उम्र के उस मस्त दौर की खुशबू आपको अभी भी मुस्कुराने को विवश कर देती हैं। ऐसी ही अपने उस बीते वक्त के कुछ लम्हों को मैंने एक पुरानी डायरी में पाया। 17-18 वर्ष पहले लिखे कुछ खट्टी मीठी बचकानी लाइनों ने मुझे भी उस दौर की याद दिला दी।

पहली नज़र में ओ दिल चुराने वाले
अब यह दिल अपनी नादानी पर रोता है।
*****
वह अनजान थे, दिल अनजान था
कब अश्क बह गए दर्द अनजान था।

हम परवान थे वह नादान था
संभल कर चलना था साथ दर्द का सामान था
*****

दिल के खाली पन्नों में हलकी सी रेखा खिची
देखना है शब्द बन कर खालीपन भरता है कि नहीं
*****
ज़िंदगी के पलो को हर पल रंग बदलते कई बार देखा है
अंधी आंखो में सपनो को सजते कई बार देखा है
हँसते होंठो पर अश्को को लुढ़क आते कई बार देखा है
संधे हुए कदमो को ठोकर खा कर गिर जाते कई बार देखा है
दर्द को कागज़ पर अपना अक्स बनते कई बार देखा है
*****
सुनहरे सपनो की ओढ़नी में
कभी शर्मा करअपना चेहरा भी छुपाया था
पर मै भूल गई कि मै एक बेटी थी
*****

जीवन यात्रा के मेरे यह स्थायी साथी
कुछ दुःख, कुछ चोट, कुछ ऊब कुछ क्रोध
मिटा सके जो इन सब को एक ऐसा क्रंदन चाहिए
*****
यह रचना बचपन कि एक सहेली के लिए ........

मै उदास थी जब,
तेरी हँसी याद आई तब
और मै खिल उठी, कुछ सोच कर यूहीं
मेरी नजरो में छाई क्रोध कि छाया,
तेरे सब्र का प्याला मेरे सामने लहराया
और मै दबा गई, कुछ सोच कर यूहीं
मेरी आंखो से निकली आँसुओ कि धारा
तेरी यादो ने अपना दामन बिछाया
और मै हंस पड़ी कुछ सोच कर यूहीं
तनहइयो में जब यह दिल कस्मसाया
तेरे साथ बीते पलो ने प्यार से सहलाया
और मै खो गई उनमे कुछ सोच कर यूहीं
भीड़ में जब खोने लगा ख़ुद का साया
तेरी आंखो का विश्वास मुझमे झलक आया
और मै चल पड़ी आगे कुछ सोच कर यूहीं
*****
उसी दोस्त के लिए एक और......

कोई तोड़ सकता है क्या
जीवन के नियम को
फिर डर कैसा उनसे
नही मिटा सकते वे भावना को
शरीर को कैद किया है उन्होंने
मस्तिस्क को क्या बाँध पाए वो कभी
नहीं रोक सकेंगे तेरी हँसी को वे
वैसे ही आंसू तो लुढ़केंगे ही
चाहे या अनचाहे
तो कुम्लाहट क्यों चेहरे पर तेरे
तू धरती कि बेटी है
हटा तो नही सकते वे जमीं तेरे पैरो के नीचे से
*****

सच में .....
बचपन के दिन भी क्या दिन थे
उस सुबह कि धुप भी प्यारी थी
उस शाम कि खुशबू न्यारी थी
हर लम्हे पर अन्ग्राई लेती
वो भरी दोपहरी भी हमारी थी
सच बचपन के दिन भी क्या दिन थे
जब हर एक शक्स अपना था
आंखो में सुंदर सपना था
जब सब कुछ अच्छा लगता था
पर सबसे अच्छा हँसना था
सच बचपन के दिन भी क्या दिन थे
कुछ पाने की ललक थी
कुछ देने की सनक थी
रोते हुए चेहरों में भी
खुशी कि ही चमक थी
सच बचपन के दिन भी क्या दिन थे
*****

Wednesday, March 12, 2008

जिन्‍दगी का द्वन्‍द - शशिप्रकाश


शशिप्रकाश जी हिन्‍दी के एक जाने माने क्रान्तिकारी कवि हैं. हाल ही में उनकी कुछ कविताओं को पढ़ते हुए उनको जाना. और उनकी एक कविता में जैसे खुद को छुपे पाया

"एक अमूर्त चित्र मुझे आकृष्‍ट कर रहा है.
एक अस्‍पष्‍ट दिशा मुझे खींच रही है.
एक निश्चित भविष्‍य समकालीन अनिश्‍चय को जन्‍म दे रहा है.
(या समकालीन अनिश्‍चय एक निश्चित भविष्‍य में ढल रहा है?)
एक अनिश्‍चय मुझे निर्णायक बना रहा है.
एक अगम्‍भीर हंसी मुझे रूला रही है.
एक आत्‍यांतिक दार्शनिकता मुझे हंसा रही है.
एक अवश करने वाला प्‍यार मुझे चिन्तित कर रहा है.
एक असमाप्‍त कथा मुझे जगा रही है.
एक अधूरा विचार मुझे जिला रहा है.
एक त्रासदी मुझे कुछ कहने से रोक रही है.
एक सहज जिन्‍दगी मुझे सबसे जटिल चीजों पर सोचने के लिए मज़बूर कर रही है.
एक सरल राह मुझे सबसे कठिन यात्रा पर लिये जा रही है."

Saturday, March 1, 2008

निराला - वो तोड़ती पत्‍थर

निराला की यह कविता बचपन में पढ़ी थी. तब शायद गरीबी शोषण जैसे शब्‍दों का अर्थ नहीं पता था पर फिर भी इस कविता को पढ़ने के बाद उस समय भी दिल में एक बैचेनी उठी थी एक चेहरा तांबाई रंग का जेहन में उतर गया था जो आज भी मौजूद है और मुझे रोज अपने आस पास कहीं ना कहीं दिख ही जाता है. और आज भी एक आवाज गूंजती है कानो में ठक ठक ठक और मुझे याद आती है निराला की यह कविता वो तोड़ती पत्‍थर. एक मित्र की मदद से आज ये कविता आप लोगों तक पहॅंुचा रही हूँ -

वह तोड़ती पत्थर.
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर.

कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार,
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रात मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार :-
सामने तरु मालिका अट्टालिका, प्राकर.

चढ़ रही धूप;
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू,
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गयीं,
प्राय: हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर.

देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्न्तार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सुना सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
`मैं तोड़ती पत्थर!'
-निराला

Thursday, February 28, 2008

ब्रेष्ट और निराला

निराला हमेशा से मेरे प्रिय कवि रहे है. उनकी कविता पहली बार मैने कक्षा दस में पढ़ी थी नाम था वो तोड़ती पत्‍थर. हालाकि मैने ब्रेष्‍ट को बहुत ज्‍यादा नहीं पढ़ा पर एक दोस्‍त से मिली मंगलेश डबराल द्वारा लिखी यह कविता मन को छू गयी इसलिए इसे पोस्‍ट कर रही हूं

सपने में देखा कोई घर
था घर क्या टूटाफूटा-सा कमरा एक
कुर्सियाँ रखी हुई थीं बहुत पुरानी
बैठे थे उन पर बेर्टोल्ट ब्रेष्ट और निराला
वैसे ही जैसे अपनी-अपनी तस्वीरों में दिखते थे
निराला अस्तव्यस्त बालों में गहरी ऑंखें कहीं दूर देखतीं
ब्रेष्ट उसी गोल चश्मे में दो दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी
और आँखें जैसे काफी दुनिया देख चुकी हों
सुना रहे थे कविता एक-दुसरे को
अभी कुछ और सुनाओ कहते
दोनों बीच-बीच में दुनिया के रंगढंग पर अचरज करते
कहा ब्रेष्ट ने मैं एक अँधेरे युग में रहता हूँ
निराला बोले मैं इसी अँधेरे का ताला खोलने को कहता हूँ
फिर कहा निराला ने चारों ओर घना है दुःख का जंगल
बोले ब्रेष्ट मैं रहा खोजता इस दुःख का कारण
निराला बोले मैं लड़ा कुलीनों से ब्राहमण के घर के व्यंजन छोड़े
जो असली जान हैं समाज के महंगू और झींगुर जैसे
या इलाहाबाद के पथ की वह मजदूरिन
उन पर जब लिखा मैंने
आलोचक बरसे मुझ पर कईयों ने कहा मुझे पागल
मरा हूँ हजार मरण
कहा ब्रेष्ट ने पूंजी और ताकत की निर्मम चालों पर
मैंने भी कलम चलायी उनके व्यवहारों को बारीकी से देखा
समाज की तलछट में रहनेवाले मुझे भी भले लगे
साधारण की हिम्मत और अच्छाई को दर्ज किया
अत्याचारी से बचने की तरकीबें खोजीं कई देश बदले
किसी तरह बच गया मृत्यु और यातना शिविरों से
जगह-जगह खोजता रहा शरण
कहा निराला ने जनता की ही तरह कविता की मुक्ति ज़रूरी है
बोले ब्रेष्ट जनता की मुक्ति में कविता बची हुई है
दो महाकवि गले मिले बोले फिर मिलते हैं
सपने में जाते दिखते दोनों ऐसे
जैसे जीवन में साथ रहा हो बरसों से
-मंगलेश डबराल

एक जिद्दी धुन से साभार

Wednesday, January 16, 2008

Frustration of Communal Elements

New Delhi

Some communal elements attached to Sangh pariwar caused disturbances in the literary exhibition organized by Janchetna, one of the leading distributor of progressive literature on occasion of birth centenary year of Shahid Bhagat Singh in Mathura and burned copies of labour newspaper Bigul.

Strongly condemning the incident, Janchetna & Rahul foundation demanded stern action against those communal elements.

Yesterday afternoon in the ongoing book exhibition organized by Janchetna at the gate of BSA Degree College, some people came there claiming themselves to be related to Sangh Pariwar and started creating disturbance over the news of Gujarat elections published in the December edition of Bigul paper. They were threatening that those who are propagating against Hindutva will be dealt with more badly than Muslims in Gujarat and Christians in Orissa. In spite of intervention made by a teacher & students of the college, they continued their vandalism and burned all the copies of Bigul.

They tried to destroy the books viz. Why I am an Atheist & Jati Dharma ke Jhagade Chodo aur Sahi Ladai se nata Jodo written by Bhagat Singh and other books of S/Shri Radha Mohan Gokul & Rahul Sankrityayan in the exhibition. They tried to damage the exhibition vehicle and threatened to burn it.

After the meeting of representatives of local residents with Sr. Police Officer of Mathura today, SSP lodged a FIR and ordered further action in the matter.

In the meantime, a memorandum has been sent to Ms. Mayawati, Chief Minister of UP & Union home Minister stating that “it is clearly understood by the attitude of communal elements targeting and creating disturbances at the mobile book exhibitions of Janchetna every where, that all these are going on under well planned conspiracy.”

On the occasion of Bhagat Singh birth centenary year, Janchetna is organizing mobile book exhibitions of progressive and revolutionary literature in the whole hindi belt. People attached to Bajrang Dal, VHP & Sangh Parwar has been continuously threatening and trying to create disturbance in these mobile exhibitions.

In Meerut on 11 October 2007, Bajrang Dal activists created disturbances over the books of Bhagat Singh, Radha Mohan Gokul, Rahul Sankrityayan published by Rahul Foundation and other anti communal books & papers and even lodged false complaints in police. Activists of Sangh Pariwar have been continuously threatening and causing disturbances in Janchetna exhibitions organized in Muzaffarnagar, Hapur, Moradabad in UP and Jaipur also. Last November, some people threatened to send Bajrang Dal activists at the book exhibition organized in Rohini, Delhi.

Chairperson of Janchetna & known writer Ms. Katyayni has said that the mission of Janchetna & Rahul Foundation to provide progressive, pro-people and revolutionary literature at the door steps of common man can not be stopped by this type of vandalism. She said that these types of activities show the peevishness of communal & fascist powers. This mission will now be further speeded up. She appealed to all the pro people writers, Journalists, publishers, social activists & people’s organizations to condemn these cowardly attacks on Janchetna.